जो चुप लगाऊँ तो सहरा की ख़ामुशी जागे By Sher << ग़ुंचा ओ गुल माह ओ अंजुम ... अपने गिर्द-ओ-पेश का भी कु... >> जो चुप लगाऊँ तो सहरा की ख़ामुशी जागे जो मुस्कुराऊँ तो आज़ुर्दगी भी शरमाए Share on: