जो नूर भरते थे ज़ुल्मात-ए-शब के सहरा में By Sher << ओ सितमगर तिरी तलवार का धब... ऐ रश्क-ए-माह रात को मुट्ठ... >> जो नूर भरते थे ज़ुल्मात-ए-शब के सहरा में वो चाँद तारे फ़लक से उतर गए शायद Share on: