जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा By Sher << बहुत अज़ीज़ थे उस को सफ़र... इन से वाबस्ता है मिरा बचप... >> जो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा उस की क़िस्मत में रही दर-बदरी कहते हैं Share on: