जुलते हैं इक चराग़ की लौ से कई चराग़ By Sher << इश्क़ है दारुश्शिफ़ा और द... पीरी में 'रियाज़'... >> जलते हैं इक चराग़ की लौ से कई चराग़ दुनिया तिरे ख़याल से रौशन हुई तो है Share on: