कब उस की फ़त्ह की ख़्वाहिश को जीत सकती थी By Sher << तफ़्सील-ए-इनायात तो अब या... जाते जाते ये निशानी दे गय... >> कब उस की फ़त्ह की ख़्वाहिश को जीत सकती थी मैं वो फ़रीक़ हूँ जिस को कि हार जाना था Share on: