कबाब-ए-सीख़ हैं हम करवटें हर-सू बदलते हैं By Sher << किसी ने हाल जो पूछा तो हो... सुना रहा हूँ उन्हें झूट-म... >> कबाब-ए-सीख़ हैं हम करवटें हर-सू बदलते हैं जल उठता है जो ये पहलू तो वो पहलू बदलते हैं Share on: