काबे में शैख़ मुझ को समझे ज़लील लेकिन By Sher << वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ म... तू तो उन का भी गिला करता ... >> काबे में शैख़ मुझ को समझे ज़लील लेकिन सौ शुक्र मय-कदे में है ए'तिबार अपना Share on: