कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को By Sher << सितम किए हैं तो क्या तुझ ... इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार... >> कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए Share on: