कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है By Sher << फेंका था किस ने संग-ए-हवस... रग-ए-हर-साज़ ये कहती है क... >> कभी खोले तो कभी ज़ुल्फ़ को बिखराए है ज़िंदगी शाम है और शाम ढली जाए है Share on: