कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है By Sher << इक उस की ज़ात से जब मेरा ... तरब का रंग मोहब्बत की लौ ... >> कभी मेरी तलब कच्चे घड़े पर पार उतरती है कभी महफ़ूज़ कश्ती में सफ़र करने से डरता हूँ Share on: