कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो By Sher << मुमकिन है सफ़र हो आसाँ अब... वो मुज़्तरिब था बहुत मुझ ... >> कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो मुझे एक रात नवाज़ दे मगर इस के बाद सहर न हो Share on: