कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए By Sher << ख़्वाहिशें ख़ून में उतरी ... कब धूप चली शाम ढली किस को... >> कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था Share on: