कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से By Sher << कटती है आरज़ू के सहारे पे... जहान-ए-दर्द में इंसानियत ... >> कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से जनाब-ए-शैख़ को मैं बरहमन कह दूँ तो क्या होगा Share on: