कहीं सुराग़ नहीं है किसी भी क़ातिल का By Sher << ख़ुदा की रज़ा है न हासिल ... जिस ख़ाक से कहते हो वफ़ा ... >> कहीं सुराग़ नहीं है किसी भी क़ातिल का लहूलुहान मगर शहर का नज़ारा है Share on: