'कैफ़' कहाँ तक तुम ख़ुद को बे-दाग़ रख्खोगे By Sher << दिन रात मय-कदे में गुज़रत... हक़ीक़त को छुपाया हम से क... >> 'कैफ़' कहाँ तक तुम ख़ुद को बे-दाग़ रख्खोगे अब तो सारी दुनिया के मुँह पर स्याही है Share on: