कैसे हस्ती के समुंदर का तलातुम ठहरे By Sher << दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ... छाते मतलब खो देते हैं >> कैसे हस्ती के समुंदर का तलातुम ठहरे ज़िंदगी भर यही तदबीर-ए-बशर होती है Share on: