काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर By Sher << वही सफ़्फ़ाक हवाओं का सदफ... ज़िंदगी अब तू मुझे और खिल... >> काकुल नहीं लटकते कुछ उन की छातियों पर चौकाँ से ये खिलंडरे गेंदें उछालते हैं Share on: