उठते होऊँ को सब ने सहारा दिया 'कलीम' By Sher << जितने हैं कुश्तगान-ए-इश्क... ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से श... >> उठते होऊँ को सब ने सहारा दिया 'कलीम' गिरते हुए ग़रीब सँभाले कहाँ गए Share on: