सिसकियाँ भर के 'शरर' कौन वहाँ रोता था By Sher << न जाने कब निगह-ए-बाग़बाँ ... बिन आवाज़ पुकारें हर-दम न... >> सिसकियाँ भर के 'शरर' कौन वहाँ रोता था ख़ेमा-ए-ख़्वाब सर-ए-शाम जहाँ पर टूटा Share on: