क़रीब आ न सका मैं तिरे मगर ख़ुश हूँ By Sher << जो ख़स-ए-बदन था जला बहुत ... मिरी ख़ुशी से मिरे दोस्तो... >> क़रीब आ न सका मैं तिरे मगर ख़ुश हूँ कि मेरा ज़िक्र तिरी दास्ताँ से दूर नहीं Share on: