कशिश कुछ ऐसी थी मिट्टी की बास में हम लोग By Sher << दिल के सुनसान जज़ीरों की ... धूप की सख़्ती तो थी लेकिन... >> कशिश कुछ ऐसी थी मिट्टी की बास में हम लोग क़ज़ा का दाम बिछा था मगर चले आए Share on: