क़तील अपना मुक़द्दर ग़म से बेगाना अगर होता By Sher << रफ़ाक़तों को ज़रा सोचने क... दिल-ए-नाज़ुक मिरा हाथों म... >> क़तील अपना मुक़द्दर ग़म से बेगाना अगर होता तो फिर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते Share on: