क़यामत से नहीं कम इंतिज़ार-ए-वस्ल की लज़्ज़त By Sher << जब न जीते-जी मिरे काम आएग... आँखें साक़ी की जब से देखी... >> क़यामत से नहीं कम इंतिज़ार-ए-वस्ल की लज़्ज़त ख़ुदा जाने कहीं वा'दा वफ़ा होता तो क्या होता Share on: