केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन By Sher << कहाँ थी मंज़िल-ए-मक़्सूद ... हम फ़ितरतन इंसाँ हैं फ़रि... >> केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन और शरीफ़ों के लिए आटा गिराँ हो जाएगा Share on: