ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद By Sher << अपनी कहें कि इस दिल-ए-ख़ा... सुनते हैं कि आबाद यहाँ था... >> ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद है अंधेरा मगर चराग़-तले Share on: