यूँ अगर घटते रहे इंसाँ तो 'ख़ालिद' देखना By Sher << आँख खुल जाए तो घर मातम-कद... भरे हैं रात के रेज़े कुछ ... >> यूँ अगर घटते रहे इंसाँ तो 'ख़ालिद' देखना इस ज़मीं पर बस ख़ुदा की बस्तियाँ रह जाएँगी Share on: