ख़ल्वत-ए-नाज़ में कुछ और ही रौनक़ होती By Sher << कभी कभी सफ़र-ए-ज़िंदगी से... डरेंगे लोग वफ़ा के ख़याल ... >> ख़ल्वत-ए-नाज़ में कुछ और ही रौनक़ होती कोई ख़ल्वत में अगर अंजुमन-आरा होता Share on: