ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करते हैं By ज़ख़्म, आवाज़, ख़ामोशी, Sher << लगी वो तुझ सी तो आलम में ... कर ही क्या सकती है दुनिया... >> ख़ामोशी के नाख़ुन से छिल जाया करते हैं कोई फिर इन ज़ख़्मों पर आवाज़ें मलता है Share on: