ख़ून होता है सहर तक मिरे अरमानों का By Sher << ब'अद मुद्दत के माह-रू... फूल बाहर है कि अंदर है मि... >> ख़ून होता है सहर तक मिरे अरमानों का शाम-ए-वा'दा जो वो पाबंद-ए-हिना होता है Share on: