ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला By Sher << 'अज़फ़री' ग़ुंचा-... मिलन के ब'अद आती है ज... >> ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला 'शनास' फिर कहीं मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू हुए हम Share on: