ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को By Sher << करता रहा मैं मिन्नतें कम ... फ़लक ने भी सीखे हैं तेरे ... >> ख़ुशी मेरी गवारा थी न क़िस्मत को न दुनिया को सो मैं कुछ ग़म बरा-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब उठा लाई Share on: