किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक By Sher << किसू से दिल नहीं मिलता है... ख़ुदा को काम तो सौंपे हैं... >> किन नींदों अब तू सोती है ऐ चश्म-ए-गिर्या-नाक मिज़्गाँ तो खोल शहर को सैलाब ले गया Share on: