किस क़दर गुनाहों के मुर्तकिब हुए हैं हम By Sher << बुतान-ए-शहर तुम्हारे लरज़... इश्क़ तू ने बड़ा नुक़सान ... >> किस क़दर गुनाहों के मुर्तकिब हुए हैं हम जो सुकून लुटता है बार बार इस घर का Share on: