किसे ख़याल था मिटती हुई इबारत का By Sher << बे-पिए शैख़ फ़रिश्ता था म... दिल की बातें दूसरों से मत... >> किसे ख़याल था मिटती हुई इबारत का महक रहा था चमन-दर-चमन समाअ'त का Share on: