किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा By Sher << अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही... बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बत... >> किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा ज़मीं का दर्द कभी आसमाँ न समझेगा Share on: