किसी को मार के ख़ुश हो रहे हैं दहशत-गर्द By Sher << बस्तियाँ तू ने ख़लाओं में... यक़ीं का दाएरा देखा है कि... >> किसी को मार के ख़ुश हो रहे हैं दहशत-गर्द कहीं पे शाम-ए-ग़रीबाँ कहीं दिवाली है Share on: