क़िस्मत ही में रौशनी नहीं थी By Sher << हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-... वफ़ूर-ए-बे-ख़ुदी में रख द... >> क़िस्मत ही में रौशनी नहीं थी बादल तो कभी का छट रहा था Share on: