कितने ही दाएरों में बटा मरकज़-ए-ख़याल By Sher << बाहर झूम रहा था मौसम फूलो... हर एक मोड़ से पूछा है मंज... >> कितने ही दाएरों में बटा मरकज़-ए-ख़याल इक बुत के हम ने सैकड़ों पैकर बना दिए Share on: