कितने ही ज़ख़्म हैं मिरे इक ज़ख़्म में छुपे By Sher << कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आ... कहता है आफ़्ताब ज़रा देखन... >> कितने ही ज़ख़्म हैं मिरे इक ज़ख़्म में छुपे कितने ही तीर आने लगे इक निशान पर Share on: