कितने मह-ओ-अंजुम हैं ज़िया-पाश अज़ल से By अज़ल, Sher << इक माह-रुख़ से मेरी मुलाक... एक पत्थर की भी तक़दीर सँव... >> कितने मह-ओ-अंजुम हैं ज़िया-पाश अज़ल से लेकिन न हुई कम दिल-ए-इंसाँ की सियाही Share on: