कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी By Sher << दो दिन भी उस सनम से न अपन... शब-ए-हिज्र में एक दिन देख... >> कोई भूली हुई शय ताक़-ए-हर-मंज़र पे रक्खी थी सितारे छत पे रक्खे थे शिकन बिस्तर पे रक्खी थी Share on: