कोई शिकवा न ग़म न कोई याद By Sher << जो कहता है वो करता है बर-... मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल... >> कोई शिकवा न ग़म न कोई याद बैठे बैठे बस आँख भर आई Share on: