कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं By Sher << हम तिरे ख़्वाबों की जन्नत... दैर से काबा गए काबा से मा... >> कुछ ख़ुद भी हूँ मैं इश्क़ में अफ़्सुर्दा ओ ग़मगीं कुछ तल्ख़ी-ए-हालात का एहसास हुआ है Share on: