कुछ दिनों दश्त भी आबाद हुआ चाहता है By Sher << कौन समझे हम पे क्या गुज़र... सिलसिला रोने का सदियों से... >> कुछ दिनों दश्त भी आबाद हुआ चाहता है कुछ दिनों के लिए अब शहर को वीरानी दे Share on: