कुर्सी मेज़ किताबें? बिस्तर अनजाने से तकते हैं By Sher << इक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ सह... मैं कहाँ आया हूँ लाए हैं ... >> कुर्सी मेज़ किताबें? बिस्तर अनजाने से तकते हैं देर से अपने घर जाएँ तो सब कुछ यूँही लगता है Share on: