कुश्ता-ए-ज़बत-ए-फुग़ाँ नग़्मा-ए-बे-साज़-ओ-सदा By Sher << लोग मिलने को चले आते हैं ... कोई साग़र पे साग़र पी रहा... >> कुश्ता-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ नग़्मा-ए-बे-साज़-ओ-सदा उफ़ वो आँसू जो लहू बन के टपकता होगा Share on: