क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ By Sher << उठा पर्दा तो महशर भी उठेग... कोई तो दश्त समुंदर में ढल... >> क्या जाने शाख़-ए-वक़्त से किस वक़्त गिर पड़ूँ मानिंद-ए-बर्ग-ए-ज़र्द अभी डोलता हूँ मैं Share on: