क्या क्या फ़राग़तें थीं मयस्सर हयात को By Sher << ये न जाने थे कि उस महफ़िल... मैं इक शजर की तरह रह-गुज़... >> क्या क्या फ़राग़तें थीं मयस्सर हयात को वो दिन भी थे कि तेरे सिवा कोई ग़म न था Share on: