क्या क्या न पढ़ा इस मकतब में, कितने ही हुनर सीखे हैं यहाँ By Sher << सहरा का कोई फूल मोअ'त... कल वस्ल में भी नींद न आई ... >> क्या क्या न पढ़ा इस मकतब में, कितने ही हुनर सीखे हैं यहाँ इज़हार कभी आँखों से किया कभी हद से सिवा बेबाक हुआ Share on: