क्या शय है खींच लेती है शब को सर-ए-फ़लक By Sher << दौलत-ए-सर हूँ सो हर जीतने... ये भी तय है कि जो बोएँगे ... >> क्या शय है खींच लेती है शब को सर-ए-फ़लक फिर सुब्ह जोड़ती है दोबारा ज़मीन से Share on: